भारतीय काव्यशास्त्र – काव्य प्रयोजन
1. “काव्यं यशसेऽर्थकृते व्यवहारविदे शिवेतरक्षतये।
सद्य: परनिर्वृतये कांतासम्मिततयोपदेशयुजे।“--- काव्य प्रयोजन में उक्त परिभाषा किसकी है
मम्मट
वामन
भामह
विश्वनाथ
2. “सुर सरि सम सब कहँ हित होई” में तुलसी ने काव्य का कौनसा प्रयोजन स्पष्ट किया है
लोक कल्याण
स्वान्तः सुखाय
आनंद
यश प्राप्ति
3. मम्मट ने कितने प्रकास के काव्य प्रयोजन माने।
छः
चार
सात
दो
4. किसका कथन - “‘काव्यमानन्दाय यशसे कान्तातुल्यतयोपदेशाय च।
आचार्य हेमचंद्र
वामन
भामह
विश्वनाथ
5. साहित्य दर्पण किस आचार्य की रचना है –
विश्वनाथ
आचार्य जयदेव
पंडितराज जगन्नथ
अप्पय दीक्षित
6. “रसपीयूष निधि” - लक्षणग्रंथ किसकी रचना है
आचार्य सोमनाथ
विश्वनाथ
आचार्य जयदेव
पंडितराज जगन्नथ
7. ‘धर्मार्थकाममोक्षेषु वैचक्षण्यं कालासु च। - किसका कथन है
भामह
आचार्य हेमचंद्र
वामन
विश्वनाथ
8. निम्नलिखित आचार्यों को उनके ग्रंथों के साथ सुमेलित कीजिए –
मम्मट
अभिनव गुप्त
कुन्तक
जगन्नाथ
राजशेखर
वक्रोक्ति जीवितम्
चंद्रालोक
काव्य मीमांसा
काव्य प्रकाश
रसगंगाधर
9. निम्नलिखित आचार्यों को उनके ग्रंथों के साथ सुमेलित कीजिए –
वामन
कुन्तक
क्षेमेंद्र
आनंदवर्धन
वक्रोक्ति सम्प्रदाय
ध्वनि सम्प्रदाय
रीति सम्प्रदाय
अलंकार सम्प्रदाय
औचित्य सम्प्रदाय
10. निम्नलिखित आचार्यों को उनके ग्रंथों के साथ सुमेलित कीजिए –
भोज-- सरस्वतीकण्ठाभरणम्
महिमभट्ट --व्यक्तिविवेक
भरत मुनि --नाट्यशास्त्रम्
भामह –काव्यालङ्कार
चंद्रालोक
काव्य मीमांसा
काव्य प्रकाश
रसगंगाधर
9. निम्नलिखित आचार्यों को उनके ग्रंथों के साथ सुमेलित कीजिए –
वामन
कुन्तक
क्षेमेंद्र
आनंदवर्धन
वक्रोक्ति सम्प्रदाय
ध्वनि सम्प्रदाय
रीति सम्प्रदाय
अलंकार सम्प्रदाय
औचित्य सम्प्रदाय
10. निम्नलिखित आचार्यों को उनके ग्रंथों के साथ सुमेलित कीजिए –
भोज-- सरस्वतीकण्ठाभरणम्
महिमभट्ट --व्यक्तिविवेक
भरत मुनि --नाट्यशास्त्रम्
भामह –काव्यालङ्कार
भारतीय काव्यशास्त्र – काव्य प्रयोजन (KAVYA PRAYOJAN)